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शराब नीति से पहले उत्पाद विभाग को लग सकता है झटका, 7 जिलों में कर्मियों को एक साल से नहीं मिला वेतन

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रांची
ऐसा लगभग तय माना जा रहा है कि जून 2025 से झारखंड में नई शराब नीति लागू हो जाएगी। उत्पाद विभाग इसकी तैयारी में पूरी तरह से जुटा हुआ है। दूसरी तरफ, 2024-25 के लिए तय 2700 करोड़ रुपये के राजस्व लक्ष्य को विभाग ने वित्त वर्ष खत्म होने से पंद्रह दिन पहले ही पार कर लिया था। विभाग का दावा है कि लक्षित आंकड़े से कहीं अधिक राजस्व की वसूली हो चुकी है और अगले साल के लिए इसे और ऊंचा करने की तैयारी चल रही है। न्यूज विंग में प्रकाशित अक्षय कुमार झा की रिपोर्ट के मुताबिक, इन सबके बीच एक बड़ी चिंता चुपचाप आकार ले रही है—और वो है राजस्व में संभावित गिरावट। दरअसल, नई नीति लागू होने से पहले विभाग प्लेसमेंट एजेंसियों से बिक्री का हिसाब लेगा, लेकिन कई दुकानों में कैश और स्टॉक का ब्योरा मेल नहीं खा रहा। खास बात ये है कि इसकी जड़ें कर्मियों के महीनों से अटके वेतन से जुड़ी हैं।
7 जिले एक साल से पेमेंटलेस, रांची में भी हाल खराब
अगर किसी अन्य विभाग में वेतन दो महीने भी देर से मिले तो हंगामा मच जाता है, लेकिन झारखंड के सात जिलों—हजारीबाग, कोडरमा, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, खूंटी और चतरा—में स्थिति बेहद गंभीर है। यहां शराब दुकानों में काम कर रहे कर्मचारियों को पिछले साल जून से वेतन नहीं मिला है। यानी एक साल पूरा होने को है, लेकिन काम लगातार जारी है। यह स्थिति राजधानी रांची में भी अलग नहीं है। राज्य को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले इस जिले में भी कर्मचारियों को पिछले पांच महीनों से वेतन नहीं मिला है। लगभग हर जिले में ऐसी ही तस्वीर सामने आ रही है।
जब सेल्समन खुद बन जाएं कैशियर और लेखा अधिकारी
जून से नई शराब नीति के लागू होने की जानकारी कर्मचारियों को पहले से है। लेकिन जब वेतन न मिले तो उनकी नज़र कैश पर ही जाती है। दुकानों का सारा कैश और रिकॉर्ड इन्हीं कर्मियों के पास होता है। ऐसे में कई जगहों पर सेल्स कर्मियों ने बिक्री की रकम में हेरफेर शुरू कर दिया है। शुरुआती जांच में कई दुकानों में बड़ी शॉर्टेज देखने को मिली है। आने वाले दिनों में विभाग को करोड़ों का नुकसान हो सकता है, जिसकी ज़िम्मेदारी उसी के कंधों पर आएगी।
ओवर प्राइसिंग के पीछे की सच्चाई भी वेतन न मिलना
राज्य के कई ग्रामीण इलाकों में शराब एमआरपी से ऊपर दामों पर बेची जा रही है। खासकर कोडरमा जैसे जिलों में दुकानदार साफ कह देते हैं कि ‘ऊपर’ तक कमीशन देना पड़ता है, इसलिए कीमत बढ़ानी ही पड़ेगी। यह भी एक वजह है कि विभाग ओवर प्राइसिंग पर पूरी सख्ती के बावजूद लगाम नहीं कस पाया। जब कर्मचारियों को महीनों से वेतन नहीं मिल रहा, तो उनका एकमात्र सहारा यही बचता है कि जैसे-तैसे पैसा निकाला जाए।

 

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